Thursday 16 January 2014

दो व्यंगजलें *दिनेश रस्तोगी

  (१)
अहोभाग्य !जो नेता-दर्शन पाये हैं |
लगता है चुनाव के बादल छाये हैं ||
आगे सारे पूंछ- हिल्लैया, हाँ भैया ,
पीछे छुटभइये,झंडे लहराये    हैं |
चेहरे से अश्लील किन्तु मुस्कान मधुर,
गर्दन पर भारीभरकम मालायें   हैं |
दहशत का पर्याय हमारी  बस्ती में,
सत्य –अहिंसा का संदेशा लाये हैं |
खादी और  खाकी,दोनों के दोनों ,
लोकतंत्र की दौलत खा,मुस्काये हैं |
त्याग भुनाया जिनने अमर शहीदों का ,
उन्होंने अपने मेले लगबाये हैं |
        (२)
कार्यालय रोज अब भाता नहीं |
सूखे वेतन में मज़ा आता नहीं ||
नेतागीरी चल पड़ी है हार कहीं ,
बिना पौए के कोई आता नहीं |
वीबी और बच्चे मिलाकर सात हैं,
बेरहम कोई तरस खाता नहीं |
सेटिंग में रोड़ा पड़ा कोई जरूर ,
ऐसे कोई फाइल लटकाता नहीं |
फीस डोनेशन मिलाकार तीन लाख ,
पुत्र यूँ स्कूल को जाता    नहीं |
                           *दिनेश रस्तोगी
                           ८-बी ,अभिरूप ;साउथ सिटी ;शाहजहांपुर -२४२२२६
                           मो .०९४५०४१४४७३   

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